अब होश आया तो जी बेहोश होने को चाहता है ।
वो चाहते है मेरी दौलत ,जी मदहोश होने को चाहता है।
मदहोश दिल की धडकन में छुपा लूं।
खाबों में तेरी यादों को समेत लूं मै।
मदहोश न कर मुझको अपना हुस्न देखा कर,
मोहब्बत अगर चेहरे से होती तोह खुदा दिल न बनता।
आपकी अदा से हम मदहोश हो गए
आप ने पलट कर देखा तोह हम बेहोश हो गए
यही एक बात केहनी थी आपसे
न जाने क्यों आपको देखते ही हम खामोश हो गए
होश का पानी छिङको, मदहोशी की अॉखों पर..
अपनों से न उलझों गैरों की बातों पर..
मदहोश मत करो मूझे अपना चेहरा दिखा कर…..
मोहब्बत अगर चेहरे से होती तो खुद़ा दिल ना बनाता..!
मदहोश नजरों में अब इश्क की चाहत उभर आई है
मोहब्बत को छुपा लू दिल मे पर आँखे तो हर जाई है..
ख्वाबों की दुनिया में यूँ,गिरफ़्त होता चला गया
होश में था लेकिन मदहोश होता चला गया..
न जाने क्या कशिश थी उन अजनबी निगाहों में
रोका बहुत खुद को फिर भी,मैं उसका होता चला गया !।
पागल ही तुतला कर बातें करते हैं
पागल हैं जो इसको प्यार समझते हैं
चुप रहने से अच्छे खासे हो जाते हैं पागल
ख़ुश रहते हैं जो अपने जज़्बात बता देते हैं
और ताख़ीर न कर आने में
हो न जाऊँ मैं मुकम्मल ख़ामोश
मुझसे बढ़ कर कोई पागल क्या होगा
मैं सपने में ग़ज़लें पढ़ता रहता हूँ
रोज़ हम हसरत - ए - दीदार लिए आँखों में
बन के पागल तिरी गलियों में फिरा करते हैं
कौन फिर मेरी तरह, मेरे सिवा, पागल हुआ
मुझको समझाते हुए इक नासेहा पागल हुआ
कहते हो तुमने रूह देखीं जिस्म का ख़ाका नहीं देखा
क्या देखा फिर देखा जो आँखों में सहरा नहीं देखा
आप के मुँह से सुनना अच्छा लगता था
पागल हो क्या पागल ऐसा नइँ कहते
पागलपन का भूत उतारा जायेगा
ख़ुद को तेरी याद में मारा जायेगा